मुंबई: आंखों में आंसू, चेहरे पर गहरी उदासी और हाथ में एक पॉलीथिन बैग—यही तस्वीर थी उस पिता की जो अपनी मृत नवजात बेटी का शव लेकर एसटी बस में सफर कर रहा था। महाराष्ट्र के पालघर जिले के जोगलवाड़ी गांव के आदिवासी मजदूर सखाराम कावर को अपनी नवजात बेटी को प्लास्टिक की थैली में लपेटकर करीब 90 किलोमीटर दूर बस से गांव ले जाना पड़ा। यह सब तब हुआ जब अस्पताल प्रशासन ने शव ले जाने के लिए एंबुलेंस देने से इनकार कर दिया।
गर्भ में ही हो गई थी बच्ची की मौत, नहीं मिली समय पर चिकित्सा सुविधा
कटकारी आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सखाराम और उनकी पत्नी अविता मजदूरी कर अपना जीवन चलाते हैं। कुछ समय पहले ही वह बदलापुर के ईंट भट्टे से वापस अपने गांव लौटे थे ताकि सुरक्षित प्रसव संभव हो सके। 11 जून को अविता को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। सखाराम ने सुबह से ही 108 पर कॉल कर एंबुलेंस मांगी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। जब तक वह निजी वाहन से खोडला पीएचसी पहुंचे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
रेफर-रेफर के खेल ने छीन ली जान
खोडला पहुंचने के बाद अविता को मोखड़ा ग्रामीण अस्पताल और फिर नासिक सिविल अस्पताल रेफर किया गया। इस दौरान न तो पर्याप्त उपचार मिला, न ही संवेदनशीलता दिखाई गई। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची की गर्भ में ही मृत्यु हो चुकी थी। 12 जून की रात 1:30 बजे अविता ने मृत बच्ची को जन्म दिया।
एंबुलेंस नहीं, मजबूरी में प्लास्टिक बैग और बस
अगले दिन अस्पताल ने बच्ची का शव सखाराम को सौंप दिया, लेकिन शव ले जाने के लिए एंबुलेंस देने से इनकार कर दिया गया। प्राइवेट एंबुलेंस वालों ने 15 से 20 हजार रुपये मांगे, जो सखाराम जैसे दिहाड़ी मजदूर के लिए नामुमकिन था। आखिरकार, उन्होंने 20 रुपये का एक कैरी बैग खरीदा, बच्ची के शव को उसमें लपेटा और राज्य परिवहन की बस से गांव के लिए रवाना हो गए।
पत्नी को भी बस से लाए, इलाज और दवा तक नहीं मिली
13 जून को सखाराम अपनी कमजोर पत्नी को नासिक से घर लाने के लिए फिर एसटी बस का सहारा लेने को मजबूर हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि बार-बार मांगने के बावजूद उन्हें एंबुलेंस नहीं दी गई। डॉ. भाऊसाहब चतर के अनुसार, अस्पताल की एंबुलेंस खराब थी और वैकल्पिक व्यवस्था की गई थी, लेकिन सखाराम ने कथित तौर पर उसे मना कर दिया। हालांकि, कई अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद भी कोई सरकारी एंबुलेंस नहीं आई।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
इस घटना ने महाराष्ट्र की ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल सिर्फ एंबुलेंस न मिलने का नहीं, बल्कि संवेदनहीन व्यवस्था का भी है, जिसने एक पिता को अपनी मृत बेटी को थैली में भरकर बस में ले जाने को मजबूर कर दिया।
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