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माहुल समुद्री भूमि पर स्वामित्व का नया विवाद — दिवेचा परिवार ने जताया दावा, एजिस लॉजिस्टिक्स की परियोजना पर संकट के बादल।



मुंबई के चेंबूर स्थित माहुल समुद्र तट की भूमि एक बार फिर विवादों में घिर गई है। बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट (BPT) द्वारा एजिस लॉजिस्टिक्स लिमिटेड को पेट्रोलियम टर्मिनल निर्माण के लिए दी गई इस जमीन पर अब पारसी समुदाय के प्रसिद्ध दिवेचा परिवार ने स्वामित्व का दावा ठोक दिया है। परिवार का कहना है कि यह जमीन उनके पूर्वजों को ब्रिटिश शासनकाल में दी गई थी, जिसका अधिकार आज भी उन्हीं के पास है।

इतिहास से जुड़ा पुराना भूमि विवाद।माहुल समुद्री भूमि पर स्वामित्व का नया विवाद — दिवेचा परिवार ने जताया दावा, एजिस लॉजिस्टिक्स की परियोजना पर संकट के बादल।

यह मामला कोई नया नहीं है। वर्ष 1831 में ब्रिटिश सरकार ने माहुल गांव की जमीन “खोटी प्रणाली” के अंतर्गत फरदून जीजीभाई दिवेचा के पूर्वजों को पट्टे पर दी थी। बाद में यह मामला “सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया बनाम फरदून जीजीभाई दिवेचा” के नाम से बॉम्बे हाईकोर्ट में पहुँचा।

1934 में आए इस ऐतिहासिक निर्णय में अदालत ने स्पष्ट कहा था कि:

  • दिवेचा परिवार को न केवल कृषि भूमि बल्कि फोर्शोर (समुद्र तट से सटी भूमि) पर भी स्वामित्व का अधिकार है।
  • यह भूमि “एलियनेटेड लैंड” की श्रेणी में आती है, जिस पर सरकार कर या नियंत्रण नहीं लगा सकती जब तक किसी रियायत का उल्लंघन न हो।
  • उस समय के राजस्व रिकॉर्ड में यह भूमि दिवेचा परिवार के नाम दर्ज थी।

वर्तमान विवाद — औद्योगिक परियोजना पर सवाल।

वर्ष 2024 में बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट ने इस जमीन को एजिस लॉजिस्टिक्स लिमिटेड को 30 वर्षों की लीज पर मात्र ₹1 प्रति वर्ग मीटर की दर से सौंपा।
कंपनी यहां एक आधुनिक पेट्रोलियम टर्मिनल विकसित कर रही है, जो माहुल के समुद्री तट पर स्थित है। लेकिन दिवेचा परिवार का कहना है कि यह भूमि उनके पैतृक अधिकार में आती है और बिना अनुमति किसी तीसरे पक्ष को नहीं दी जा सकती।

परिवार के एक सदस्य ने कहा,

“1831 की रियायत और 1934 के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार यह जमीन हमारे अधिकार क्षेत्र में है। सरकार या बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट को इसे किसी निजी कंपनी को सौंपने का अधिकार नहीं है। हम जल्द ही अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।”

यह विवाद अब केवल स्वामित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि औद्योगिक निवेश, पर्यावरणीय चिंताओं और ऐतिहासिक भूमि अधिकारों के टकराव का रूप ले चुका है।
यदि दिवेचा परिवार अदालत में याचिका दायर करता है, तो एजिस लॉजिस्टिक्स की करोड़ों की परियोजना कानूनी संकट में फँस सकती है।

साथ ही, बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट पर भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या उन्होंने भूमि के स्वामित्व और ऐतिहासिक दस्तावेजों की सही तरीके से जांच की थी या नहीं।

  • भूमि का प्रकार: Foreshore / एलियनेटेड लैंड
  • ऐतिहासिक निर्णय: बॉम्बे हाईकोर्ट, 1934
  • लीजधारी: एजिस लॉजिस्टिक्स लिमिटेड (30 वर्ष की लीज)
  • स्थान: माहुल समुद्री क्षेत्र, मुंबई

स्थानीय पर्यावरणीय संगठनों (NGO) ने भी इस परियोजना पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह टर्मिनल तटीय जैव विविधता को नुकसान पहुँचा सकता है और प्रदूषण बढ़ा सकता है। वे इस भूमि पर औद्योगिक निर्माण रोकने की मांग कर रहे हैं।

माहुल की यह समुद्री भूमि एक बार फिर इतिहास बनाम विकास के संघर्ष का प्रतीक बन गई है।
जहां एक ओर सरकार और उद्योग जगत इसे विकास की दिशा में एक कदम मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर दिवेचा परिवार अपने पैतृक अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत जाने की तैयारी कर रहा है।

अब देखना यह होगा कि अदालत एक बार फिर 1934 की तरह पारंपरिक स्वामित्व को मान्यता देती है या आधुनिक औद्योगिक विकास को प्राथमिकता दी जाती है — यही इस विवाद का निर्णायक मोड़ होगा।

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