IIT बॉम्बे और CME ने विकसित किया 'लेगो ब्लॉक' जैसे मॉड्यूलर बंकर, दुश्मन के हमलों को आसानी से झेलने में सक्षम।



मुंबई/पुणे: IIT बॉम्बे और पुणे स्थित कॉलेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग (CME) के शोधकर्ताओं ने मिलकर एक नया प्रकार का मॉड्यूलर बंकर विकसित किया है, जिसे लेगो ब्लॉक्स की तरह जोड़ा जा सकता है। यह बंकर आधुनिक युद्ध के खतरों—जैसे मिसाइल और तोपखाने के हमलों—के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है।

क्या बोले शोधकर्ता?

इस परियोजना से जुड़े सीएमई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "मॉड्यूलर PDS ने सुरक्षा के लिए आवश्यक मोटाई को पारंपरिक शेल्टरों की तुलना में काफी हद तक घटा दिया है। साथ ही, हमले के दौरान होने वाले स्पॉलिंग और फ्रैग्मेंटेशन से भी बेहतर सुरक्षा मिलती है।"

उन्होंने बताया कि इन बंकर यूनिट्स को गोलाबारूद, तोपखाने और उच्च विस्फोटक हवाई हमलों के विरुद्ध कड़े परीक्षणों से गुजारा गया। नतीजा यह रहा कि इन मॉड्यूलर बंकरों ने बार-बार मिसाइल हमलों को भी आसानी से झेल लिया।

पारंपरिक बनाम मॉड्यूलर बंकर: क्या है अंतर?

दीवार की मोटाई: पारंपरिक बंकर की दीवारें लगभग 600 मिमी मोटी होती हैं। परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि मॉड्यूलर बंकर यह सुरक्षा केवल 25% मोटाई में दे सकते हैं, यानी करीब 70% कम।

निर्माण: मॉड्यूलर बंकर हल्के होते हैं और एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाए जा सकते हैं। इन्हें लेगो ब्लॉक्स की तरह जोड़ना आसान होता है।

निर्माण समय: पारंपरिक बंकरों को बनने में 7–8 दिन लगते हैं, जबकि मॉड्यूलर बंकर सिर्फ 2–3 दिनों में तैयार किए जा सकते हैं।

कैसे काम करता है यह इनोवेशन?

इस सिस्टम में पहले से निर्मित अल्ट्रा हाई परफॉर्मेंस कंक्रीट के हल्के ब्लॉक्स और घुमावदार छत वाले पैनल इस्तेमाल होते हैं। हर ब्लॉक का वजन 20 किलो से भी कम है, जिसे सैनिक बिना किसी भारी उपकरण या विशेषज्ञ मदद के दुर्गम क्षेत्रों में भी आसानी से स्थापित कर सकते हैं।

IIT बॉम्बे के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनीष कुमार के नेतृत्व में हुए इस शोध में यह भी सामने आया कि घुमावदार छतें समान मोटाई की सपाट छतों की तुलना में पांच गुना अधिक मजबूत होती हैं। इससे वे हवाई हमलों के प्रभाव को कम करने और उन्हें भटकाने में भी कारगर सिद्ध होती हैं।

सीमाओं पर बन सकते हैं गेम-चेंजर

शोधकर्ताओं का दावा है कि ये बंकर सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करेंगे। सबसे खास बात यह है कि इन्हें बिना क्रेन या कंक्रीट मिक्सर के, केवल सैनिकों की एक टीम द्वारा, बनाना संभव है।

यह इनोवेशन नौ वर्षों की मेहनत का परिणाम है और यह पारंपरिक बंकरों की जगह लेने की क्षमता रखता है, जो रेत की बोरियों, स्टील शीट्स और पत्थरों से बने होते हैं और आज के आधुनिक खतरों के सामने अक्सर कमजोर साबित होते हैं।



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