नई दिल्ली। साल 2006 में मुंबई में हुए सीरियल ट्रेन ब्लास्ट ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। कुछ ही मिनटों में हुए सात धमाकों में 187 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 600 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले की जांच के दौरान महाराष्ट्र एटीएस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें एक नाम था — डॉ. वाहिद दीन मोहम्मद शेख।
9 साल जेल में रहने के बाद बरी
एटीएस ने डॉ. शेख को इस मामले में आरोपी बनाया और मकोका जैसी गंभीर धाराओं में जेल भेजा। वे पूरे 9 साल तक जेल में कैद रहे। लेकिन 11 सितंबर 2015 को विशेष अदालत ने सबूत न मिलने पर उन्हें बरी कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि डॉ. शेख के खिलाफ कोई प्रमाण मौजूद नहीं है।
अब 9 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग
आज 46 वर्षीय डॉ. शेख ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से 9 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है। उनका कहना है कि यह केवल पैसों की लड़ाई नहीं, बल्कि न्याय और स्वीकार्यता की लड़ाई है।
"जवानी के सुनहरे साल छिन गए"
डॉ. शेख ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा,
"2006 में मुझे झूठा फंसाकर जेल भेजा गया। नौ साल तक मैंने कैद की यातना झेली। मेरी जवानी के सबसे अहम साल बर्बाद हो गए। मुझे हिरासत में प्रताड़ित किया गया और मेरा परिवार सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक संकट से जूझता रहा।"
उन्होंने आगे बताया कि वे एक स्कूल शिक्षक हैं और परिवार के अकेले कमाने वाले सदस्य हैं। जेल में रहने के दौरान उनके परिवार पर लगभग 30 लाख रुपये का कर्ज़ चढ़ गया।
दस साल तक मुआवजे की मांग नहीं की
याचिका में कहा गया है कि डॉ. शेख ने नैतिक कारणों से दस वर्षों तक मुआवजे की मांग नहीं की थी, लेकिन अब वे मानते हैं कि अन्याय और अपमान की भरपाई के लिए सरकार को मुआवजा देना चाहिए।
पूरा मामला
गौरतलब है कि 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में एटीएस ने 13 लोगों को गिरफ्तार किया था। लंबी सुनवाई के बाद डॉ. शेख को 2015 में बरी कर दिया गया। जबकि अन्य 12 आरोपियों को निचली अदालत ने फांसी या उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील हुई और इसी साल जुलाई 2025 में सभी 12 आरोपी भी बरी कर दिए गए।
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