एक मामूली जिंदगी से करोड़ों के स्कैम तक की यात्रा
कर्नाटक के खानापुर के छोटे से रेलवे स्टेशन पर मूंगफली पैकेट बेचने वाला एक गरीब लड़का—अब्दुल करीम तेलगी—कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि तीन दशक बाद उसका नाम भारत के सबसे बड़े वित्तीय घोटालों में शामिल होगा। 1961 में जन्मे तेलगी का बचपन संघर्षों में बीता। पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी जल्दी उसके कंधों पर आ गई और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए उसे कई छोटे-मोटे काम करने पड़े।
रोजी-रोटी की तलाश में वह सऊदी अरब पहुंचा, जहां उसने नकली दस्तावेज तैयार करने के गुर सीखे। लेकिन यही मार्ग आगे चलकर उसे अपराध की ऐसी दुनिया में ले गया, जहां से वापसी लगभग असंभव थी। 1993 में जालसाजी के आरोप में पहली बार जेल गए तेलगी की जिंदगी यहीं से एक खतरनाक मोड़ लेती है।
जेल में बनी खतरनाक साझेदारी
जेल में तेलगी की मुलाकात कोलकाता के राम रतन सोनी से हुई। दोनों के दिमाग में जल्द ही एक बड़े घोटाले का बीज अंकुरित हुआ। रिहाई के बाद दोनों ने मिलकर फर्जी पासपोर्ट और फिर नकली स्टांप पेपर बनाने के अवैध कारोबार की शुरुआत की।
1994 में स्टांप वेंडर का लाइसेंस हथियाने के बाद तेलगी ने बड़े पैमाने पर स्टांप पेपर की नकल तैयार करना शुरू कर दिया। 1992 के हर्षद मेहता स्कैम के बाद बाजार में स्टांप पेपर की कमी थी—और तेलगी ने इसी कमी को अपने फायदे में बदल डाला।
देशभर में फैला फर्जी स्टांप पेपर का जाल
1996 से 2000 के बीच तेलगी का नेटवर्क देश के करीब 70 शहरों में फैल चुका था—मुंबई, नासिक, पुणे, कर्नाटक, राजस्थान समेत कई राज्यों में।
पुरानी, निरस्त सरकारी मशीनें, भ्रष्ट अधिकारी, और राजनीतिक संरक्षण… इन सबकी मदद से उसने हजारों करोड़ का अवैध स्टांप पेपर बाजार खड़ा कर दिया। अनुमान है कि इस स्कैम की कुल राशि करीब ₹30,000 करोड़ थी।
पोल कैसे खुली?
2000 में बेंगलुरु में दो लोगों को फर्जी स्टांप पेपर के साथ गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में इसका सीधा लिंक तेलगी तक पहुंचा।
2001 में अजमेर से तेलगी गिरफ्तार हुआ। मामला बढ़ता देख महाराष्ट्र सरकार ने विशेष जांच दल (SIT) गठित की। जांच आगे बढ़ी तो भ्रष्ट अधिकारियों से लेकर नेताओं तक का पूरा सिंडिकेट सामने आया।
गिरफ्तारियां, सजा और खुलासे
2003 में SIT ने पहली बड़ी गिरफ्तारी की—महाराष्ट्र के विधायक अनिल गोटे। कुल 54 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
2004 में CBI ने तेलगी के खिलाफ विस्तृत आरोप पत्र दायर किया।
लंबी सुनवाई के बाद 2007 में कोर्ट ने तेलगी को 30 साल की कठोर कैद और ₹202 करोड़ जुर्माने की सजा सुनाई।
खबरों के अनुसार, सजा से पहले तेलगी ने अपनी पत्नी शाहिदा के कहने पर अपराध स्वीकार किया।
तेलगी का अंत
अब्दुल करीम तेलगी कई गंभीर बीमारियों—मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर और एड्स—से जूझ रहा था।
अक्टूबर 2017 में मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर के कारण उसकी मौत हो गई।
एक मामूली परिवार में जन्मा यह व्यक्ति, अपनी शातिर चालों और भ्रष्ट तंत्र के सहारे भारत के इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक घोटालों में से एक का ‘किंगपिन’ बन गया।
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