मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) की तय समय-सीमा बीते एक माह हो चुका है, लेकिन शहर की करीब 50 प्रतिशत बेकरी अभी तक पारंपरिक भट्टियों से स्वच्छ ईंधन पर नहीं आई हैं। बीएमसी ने 19 फरवरी 2025 को सभी बेकरी और भोजनालयों को 8 जुलाई तक पाइप्ड नैचुरल गैस (PNG) या अन्य स्वच्छ ईंधन अपनाने का निर्देश दिया था। यह कदम बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद उठाया गया था, जिसमें अदालत ने पारंपरिक लकड़ी की भट्टी से काम करने वाली इकाइयों को स्वच्छ ईंधन अपनाने के निर्देश दिए थे।
आधे से ज्यादा बेकरी अब भी चूल्हों पर
बीएमसी के आंकड़ों के मुताबिक, मुंबई में कुल 592 बेकरी हैं। इनमें से 209 बेकरी स्वच्छ ईंधन पर काम कर रही हैं, जबकि 297 अब भी लकड़ी की भट्टी या चूल्हों का इस्तेमाल कर रही हैं। केवल 37 बेकरी ऐसी हैं जो रूपांतरण की प्रक्रिया में हैं। फरवरी से अगस्त के बीच 46 बेकरी ने ईंधन बदला, जिनमें से 32 पहली नोटिस के बाद और 14 दूसरी नोटिस मिलने के बाद स्वच्छ ईंधन पर आईं।
सब्सिडी का लाभ नहीं उठा रहे बेकरी मालिक
बीएमसी ने बताया कि बेकरी मालिकों को कई रियायतें दी गईं। महानगर गैस लिमिटेड (एमजीएल) ने सुरक्षा जमा राशि माफ की और 35 प्रतिशत सब्सिडी योजना भी चलाई गई। इसके बावजूद अब तक केवल दो बेकरी ने सब्सिडी के लिए आवेदन किया है। प्रशासन ने फायर एनओसी शुल्क पर भी छूट का प्रस्ताव दिया था।
अब जारी होंगी स्टॉप-वर्क नोटिस
बीएमसी अधिकारियों ने कहा कि अब उन बेकरी मालिकों को स्टॉप-वर्क नोटिस दिए जाएंगे जिन्होंने अभी तक स्वच्छ ईंधन नहीं अपनाया है। नोटिस के बाद मालिकों को अपनी देरी का कारण बताने का अवसर मिलेगा, अन्यथा उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
प्रदूषण में बेकरी की 6% हिस्सेदारी
मुंबई में 2022 से प्रदूषण की समस्या लगातार गंभीर बनी हुई है। 2023 में बीएमसी ने ‘मुंबई एयर पॉल्यूशन मिटिगेशन प्लान’ (MAPMP) तैयार किया था। उसमें बेकरी और भोजनालयों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत बताया गया था। मौजूदा समय में बेकरी का योगदान शहर के वायु प्रदूषण में 6 प्रतिशत है। अधिकारियों के मुताबिक यह आंकड़ा भले ही बड़ा न लगे, लेकिन चूंकि अधिकांश बेकरी भीड़भाड़ वाले इलाकों जैसे भायखला, मझगांव, मलाड और सांताक्रुज़ में स्थित हैं, इसलिए इसका असर इंसानों पर बेहद खतरनाक है।
परंपरागत पाव पर संकट
मुंबई का मशहूर पाव अब भी पारंपरिक भट्टियों में ही पकाया जाता है। ये भट्ठियां ईंट और गारे से बनी होती हैं और केवल लकड़ी से ही गर्म होती हैं। बेकरी एसोसिएशन के सदस्यों का कहना है कि इन छोटी भट्टियों (150 वर्ग फुट तक) में बिजली का उपयोग न तो संभव है और न ही आर्थिक रूप से व्यवहार्य।
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