मुंबई | 21 जुलाई 2025 — बॉम्बे हाईकोर्ट ने 11 जुलाई 2006 को मुंबई लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में सोमवार को एक अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने सबूतों की कमी और जांच में गंभीर खामियों का हवाला देते हुए इस केस में गिरफ्तार किए गए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया।
पीड़ितों का आक्रोश: "अगर ये निर्दोष हैं, तो हमारे बच्चों को किसने मारा?"
कोर्ट के इस फैसले से जहां आरोपी पक्ष को राहत मिली है, वहीं पीड़ित परिवारों में गहरा आक्रोश है। धमाकों में अपनी बेटी को खो चुके रमेश नाइक ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
"हमें तो ये कोर्ट का निर्णय मजाक जैसा लग रहा है। अगर ये लोग निर्दोष थे, तो फिर हमारी बेटियों और बेटों की जान किसने ली? क्या किसी को वो दिन याद है जब ट्रेनें खून से लथपथ थीं?"
उन्होंने सवाल उठाया कि अगर 12 सालों बाद अदालत कह रही है कि आरोपी निर्दोष हैं, तो असली दोषी अब भी कहां हैं? क्या वे अब भी खुलेआम घूम रहे हैं?
क्या था मामला?
11 जुलाई 2006 को मुंबई की भीड़भाड़ वाली लोकल ट्रेनों में महज 11 मिनट के भीतर सात धमाके हुए थे। यह आतंकी हमला इतना भयानक था कि इसमें 189 लोग मारे गए और 800 से ज्यादा घायल हो गए थे। यह भारत के इतिहास में सबसे खतरनाक आतंकी घटनाओं में से एक मानी जाती है।
कोर्ट का अवलोकन: साक्ष्य अपर्याप्त और विरोधाभासी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और मुंबई पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों को “अपर्याप्त और विरोधाभासी” करार देते हुए यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि आरोपी वास्तव में इस हमले में शामिल थे।
अब आगे क्या?
इस फैसले के बाद पीड़ित परिवारों ने उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) का दरवाजा खटखटाने की बात कही है। उनका कहना है कि उन्हें न्याय चाहिए और वे इस लड़ाई को अंतिम मुकाम तक ले जाएंगे।