नागपुर। रविवार सुबह नागपुर के जरीपटका कब्रिस्तान में एक सन्नाटा पसरा था। यहां 2006 मुंबई लोकल ट्रेन धमाकों के मामले में बेकसूर साबित हुए कमाल अहमद अंसारी को याद करने उनके परिजन और करीबी लोग एकत्र हुए। चार साल पहले जेल में दम तोड़ चुके अंसारी की कब्र पर खड़े होकर परिजनों ने बॉम्बे हाईकोर्ट का वह फैसला पढ़ा, जिसमें उनका नाम आखिरकार बेदाग घोषित किया गया।
2006 के धमाके मामले में 2015 में विशेष मकोका अदालत ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था। इनमें से पांच, जिनमें अंसारी भी शामिल थे, को फांसी की सजा सुनाई गई थी। लेकिन 21 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सबूतों की कमजोरी, गवाहों की पहचान में खामियां और जबरन कबूलनामे को आधार मानते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया।
अंसारी बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले थे। रोज़मर्रा की मजदूरी और छोटी चिकन की दुकान से वह अपने परिवार का पेट पालते थे। 2006 में गिरफ्तारी के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी के 16 साल सलाखों के पीछे गुज़ारे। कोरोना काल 2021 में नागपुर सेंट्रल जेल में उनकी मौत हो गई थी।
उनके छोटे भाई जमाल अहमद दिल्ली से खासतौर पर इस मौके पर पहुंचे। नम आंखों से कब्र के पास खड़े जमाल के साथ डॉ. अब्दुल वहिद शेख भी मौजूद थे, जो इस केस में अकेले ऐसे आरोपी थे जिन्हें पहले ही बरी कर दिया गया था।
शेख ने कहा, "अदालत ने उनका नाम साफ कर दिया, लेकिन वे 16 साल कौन लौटाएगा? उनके बच्चे बाप के बिना बड़े हुए, उनकी पत्नी ने बदनामी का बोझ झेला।"
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