. iqra Hasan Dimple Yadav
इकरा हसन ने अपने बयान में स्पष्ट कहा, "एक महिला जनप्रतिनिधि, सबसे बड़ी पंचायत की सदस्य पर ऐसी टिप्पणी करना बेहद शर्मनाक बात है... ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। इनका सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए, ये कोई धर्मगुरु नहीं हैं, किसी धर्म के ठेकेदार नहीं हैं। इन्हें किसी भी महिला पर ऐसी टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।"iqra hasan dimple Yadav
यह बयान कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि महिला सम्मान और सार्वजनिक मर्यादा के हनन के खिलाफ एक मुखर आवाज है। एक ऐसे समय में जब सार्वजनिक विमर्श का स्तर लगातार गिर रहा है और अभद्र टिप्पणियां आम होती जा रही हैं, इकरा हसन का यह बयान एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। Samajwadi party Akhilesh yadav
किसी भी धर्मगुरु या सामाजिक व्यक्ति का यह अधिकार नहीं है कि वह किसी महिला, विशेषकर एक जनप्रतिनिधि के खिलाफ अशोभनीय और अपमानजनक टिप्पणी करे। राजनीति में वैचारिक मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन इन मतभेदों को व्यक्तिगत हमलों और अभद्र भाषा में तब्दील करना समाज के लिए घातक है।
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या समाज में मर्यादाएं खत्म हो रही हैं? क्या हम उस स्तर पर आ गए हैं जहां सार्वजनिक मंचों से महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक बयानबाजी स्वीकार्य हो गई है? इकरा हसन की मांग बिल्कुल जायज है कि ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें समाज से बहिष्कृत किया जाना चाहिए। धर्म या किसी अन्य पहचान की आड़ में ऐसी टिप्पणियां करना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।
यह केवल डिंपल यादव या सपा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हर उस महिला का मुद्दा है जो सार्वजनिक जीवन में सक्रिय है और जिसे ऐसी अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। यह समय है कि समाज ऐसे लोगों के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा हो और उन्हें यह स्पष्ट संदेश दे कि ऐसी भाषा और व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सामाजिक बहिष्कार एक सशक्त हथियार हो सकता है जो ऐसे लोगों को यह सिखा सके कि सार्वजनिक जीवन में मर्यादा और सम्मान कितना महत्वपूर्ण है।
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