**मुंबई, 2 अगस्त 2025** - मुंबईकरों के लिए एक बड़ी राहत भरी खबर सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें मुंबई के कंजूरमार्ग इलाके की 120 हेक्टेयर जमीन को "संरक्षित वन" घोषित किया गया था। इस फैसले के बाद बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के लिए अब इस महत्वपूर्ण स्थल पर कचरा निपटान जारी रखने का रास्ता साफ हो गया है।
**क्या था मामला?
दरअसल, बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2 मई को एक आदेश जारी कर कंजूरमार्ग स्थित डंपिंग साइट के 120 हेक्टेयर हिस्से को संरक्षित मैंग्रोव वन घोषित कर दिया था और इसके जीर्णोद्धार का आदेश दिया था। इस फैसले से मुंबई में कचरा निपटान को लेकर एक बड़ा संकट खड़ा हो गया था, क्योंकि यह साइट शहर के 90 प्रतिशत से अधिक कचरे का प्रबंधन करती है। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
**सरकार की दलीलें और सुप्रीम कोर्ट का रुख**
महाराष्ट्र सरकार ने अपनी अपील में तर्क दिया कि यह भूमि "उचित प्रक्रिया और पर्यावरणीय मंजूरी" के बाद लैंडफिल उपयोग के लिए डी-नोटिफाई की गई थी। सरकार का कहना था कि यह क्षेत्र गलती से संरक्षित वन घोषित हो गया था, जबकि यह वर्षों से कचरा डंपिंग के लिए उपयोग किया जा रहा था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि यदि इस लैंडफिल को बंद कर दिया जाता है, तो मुंबई में ठोस कचरा निपटान के लिए कोई जगह नहीं बचेगी, जिससे शहर के निवासियों के लिए गंभीर स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी जोखिम पैदा होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार की दलीलों पर गौर किया। जब एक वकील ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक का विरोध किया, तो सुप्रीम कोर्ट ने सीधा सवाल पूछा, "तो फिर आप हमें बताइए कि कचरा कहां गिराया जाएगा?" शीर्ष अदालत ने जनहित को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय के आदेश पर तत्काल रोक लगाने का फैसला किया।
**वनशक्ति एनजीओ का विरोध**
इस मामले में पर्यावरण एनजीओ वनशक्ति ने 2013 में जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कंजूरमार्ग भूमि को संरक्षित वन घोषित करने की मांग की गई थी। एनजीओ का तर्क था कि 2009 में 120 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि को डंपिंग के लिए डी-नोटिफाई करने का राज्य का फैसला अवैध था, क्योंकि इसमें उचित प्रक्रिया और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत केंद्र सरकार की मंजूरी का अभाव था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश से उन्हें झटका लगा है।
**आगे क्या?**
सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम आदेश बीएमसी के लिए एक बड़ी राहत है, क्योंकि इससे उसे शहर के बढ़ते कचरा संकट से निपटने में मदद मिलेगी। यह स्थगन आदेश मामले की अंतिम सुनवाई तक प्रभावी रहेगा। बीएमसी अधिकारियों ने संकेत दिया है कि वे भविष्य में कंजूरमार्ग साइट पर सूखे कचरे को संसाधित करने के लिए 60 मेगावाट का 'वेस्ट-टू-एनर्जी' प्लांट और गीले कचरे के लिए 500 टीडीपी प्लांट स्थापित करने की योजना बना रहे हैं, जिससे प्रतिदिन लगभग 16.25 टन संपीड़ित बायोगैस (CBG) उत्पन्न होगी।
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