शनिवार रात करीब 10 बजे, जब पूरा पुणे शहर अंधेरे में डूबा था और लोग अपने घरों में आराम की तैयारी कर रहे थे, तभी खराड़ी इलाके की एक ऊँची इमारत के नीचे पुलिस की गाड़ियों का काफिला रुका। लगभग 150 पुलिस अधिकारी एक-एक करके बाहर निकले और सीधे 9वीं मंज़िल की ओर बढ़े। यहां चल रहे फर्जी कॉल सेंटर पर पुलिस ने छापा मारा और ऑपरेशन के दौरान 12 महिलाओं समेत 123 लोगों को हिरासत में लिया गया।
क्या था मामला?
यह कॉल सेंटर 'मैग्नेटेल बीपीएस एंड कंसल्टेंट्स एलएलपी' के नाम पर चलाया जा रहा था और इसका असली मकसद था – अमेरिकी नागरिकों को ठगना। कॉल सेंटर के कर्मचारी खुद को अमेरिकी पुलिस या सुरक्षा एजेंट बताकर नागरिकों को धमकाते थे कि उनके अमेजन अकाउंट्स का इस्तेमाल ड्रग्स की तस्करी के लिए किया जा रहा है। इसके बाद डराकर उन्हें अमेजन गिफ्ट कार्ड खरीदने के लिए मजबूर किया जाता था।
कैसे हुआ ऑपरेशन?
इस पूरे ऑपरेशन का नेतृत्व एसीपी गणेश इंगले और वरिष्ठ अधिकारी स्वप्नाली शिंदे, शब्बीर सैय्यद व अजय वाघमारे ने किया। करीब 10 घंटे तक चले अभियान में पुलिस ने 64 लैपटॉप, 41 मोबाइल फोन, चार राउटर और 13.74 लाख रुपये नकद जब्त किए। साथ ही लाखों अमेरिकी नागरिकों का संवेदनशील डेटा भी बरामद हुआ।
फर्जीवाड़े का मास्टरमाइंड कौन?
पुलिस के अनुसार, इस साइबर फ्रॉड रैकेट को चलाने वाले कुल 8 मास्टरमाइंड में से 5 को गिरफ्तार कर लिया गया है। इनमें सरजीत सिंह शेखावत, अभिषेक पांडे, श्रीमय परेश शाह, लक्ष्मण शेखावत और एरोन क्रिश्चियन शामिल हैं। बाकी तीन आरोपी—करण शेखावत, केतन रमानी और संजय मोरे—फरार हैं।
वेतन मात्र ₹25,000, किराया ₹8 लाख!
जांच में सामने आया है कि कॉल सेंटर के कर्मचारियों को ₹25,000 प्रति माह नकद वेतन दिया जाता था। वहीं कॉल सेंटर के लिए खराड़ी के प्राइम लोकेशन में एक पूरा फ्लोर ₹8 लाख रुपये मासिक किराए पर लिया गया था। कॉल सेंटर का रोज़ाना टारगेट लगभग $30,000 (लगभग ₹25 लाख) कमाना था।
कौन थे कर्मचारी?
गिरफ्तार किए गए अधिकांश आरोपी केवल 12वीं कक्षा तक पढ़े हैं और उत्तर व पूर्वोत्तर भारत से हैं। इन्हें इस शर्त पर नौकरी दी गई थी कि वे किसी को अवैध गतिविधियों के बारे में नहीं बताएंगे। उनकी अंग्रेजी अच्छी होने के कारण उन्हें अमेरिकी नागरिकों को कॉल करने के लिए चुना गया।
निष्कर्ष:
यह मामला सिर्फ एक साइबर क्राइम नहीं, बल्कि एक संगठित अंतरराष्ट्रीय ठगी का हिस्सा है। पुलिस अब यह पता लगाने में जुटी है कि इस पूरे गिरोह का नेटवर्क कहां तक फैला है और कौन-कौन इसमें शामिल है।
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