मां वैष्णो देवी की शक्ति: आस्था की वो डोर जो हर संकट में भक्तों को खींच लाती है।




"बस एक शब्द है — श्रद्धा।"
जैसे-जैसे हम चढ़ाई कर रहे थे, मेरी मुलाकात बनारस की 59 वर्षीय पुष्पा देवी से हुई। उन्होंने बताया कि यह उनकी 45वीं यात्रा है। मैं चकित रह गई। जब मैंने उन्हें बताया कि यह मेरी पहली यात्रा है, तो वह भी उतनी ही हैरान हो गईं।

जम्मू-कश्मीर स्थित मां वैष्णो देवी का मंदिर देश के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। कहते हैं जब "बुलावा" आता है, तब ही मां की शरण में जाना होता है। मेरे लिए यह पहला बुलावा था — और उस आंतरिक पुकार को रोकना नामुमकिन था।

युद्ध की आहट और आस्था की राह

22 अप्रैल 2025 को हमने ट्रेन टिकट और होटल की बुकिंग कर ली। लेकिन कुछ ही घंटे बाद, पहलगाम के पास बैसारन घाटी में आतंकी हमला हुआ। 7 मई को भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' शुरू किया और पाकिस्तान ने जवाबी मिसाइल और ड्रोन हमले किए। सीमा पर गोलीबारी शुरू हो गई और कर्फ्यू के हालात बन गए।

हमें अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ी। 6 बजे की अटका आरती भी कैंसिल करनी पड़ी। 10 मई को संघर्षविराम की घोषणा हुई, लेकिन कुछ ही घंटों में पाकिस्तान ने फिर सीजफायर तोड़ दिया।

जहां पहले रोज़ाना 35,000 यात्री आते थे, वहीं 10-11 मई को यह संख्या घटकर 1,300 रह गई।

मां का बुलावा और यात्रा की शुरुआत

10 दिन बाद हालात कुछ सामान्य हुए और हम नई दिल्ली से कटरा तक वंदे भारत एक्सप्रेस से रवाना हुए। रात 8 बजे हमने 13 किलोमीटर लंबी चढ़ाई शुरू की — त्रिकुटा पहाड़ियों में स्थित 5,200 फीट की ऊंचाई पर बसे दरबार की ओर।

रास्ते में एक सुरक्षा जांच में तैनात महिला कर्मी ने कहा,
"ड्रोन आते रहे... बहुत पास तक आ गए थे। पर आदमी कितना डरेगा?"
वहीं चाय बेचने वाले सुनील शर्मा ने मुस्कुराते हुए कहा,
"डर किस बात का? माता रानी के पास थे।"

आधा रास्ता तय करने के बाद हम पहुंचे अर्धकुंवारी — जहां माता ने भैरोनाथ से बचने के लिए 9 महीने तक तपस्या की थी। यहां का गर्भजून गुफा आध्यात्मिक पुनर्जन्म का प्रतीक है।

विश्वास की विजय

हमारी यात्रा के दौरान अलग-अलग जगहों से आए श्रद्धालुओं से मिलना हुआ। बनारस की पुष्पा देवी, गोरखपुर के आनंद कुमार गुप्ता, लखनऊ की शिक्षिका कविता तिवारी — सभी ने एक ही बात कही —
"जब बुलावा आता है, कोई रोक नहीं सकता।"

आनंद जी बोले,
"मैं तो कोविड के दौरान भी चार बार आया। अगर मरना लिखा है तो यहीं मरूंगा — मां की छांव में।"

भक्ति की पूर्णता

सुबह 6 बजे हम माता के दरबार पहुंचे। रंग-बिरंगी रोशनी में नहाया भव्य भवन जैसे साक्षात आशीर्वाद की वर्षा कर रहा था। दो घंटे की आरती के बाद हमें मुख्य गर्भगृह में तीन स्वरूपों — मां काली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती — के दर्शन हुए।

बाद में तीन मिनट की रोपवे यात्रा कर हम भैरो बाबा मंदिर पहुंचे। मान्यता है कि जब तक इस मंदिर के दर्शन न हों, मां वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।

अंत में...

22 घंटे 30 मिनट में हमने कटरा वापसी की। रास्ते में फिर श्रद्धालुओं की भीड़ दिखी — उनके माथों पर 'जय माता दी' की पट्टियां और चेहरों पर अटूट विश्वास।

सच ही कहा किसी ने —
"श्रद्धा ही तो है जो जीवन की कठिन राहों पर हमारा मार्गदर्शन करती है।


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