कोर्ट की फटकार: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं — सेना पर टिप्पणी की सीमा तय ।(राहुल गांधी)


लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को तगड़ा झटका देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने स्पष्ट कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो देता है, लेकिन यह अधिकार निरंकुश नहीं है। यदि कोई बयान भारतीय सेना की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, तो वह इस मौलिक अधिकार की आड़ में संरक्षित नहीं रह सकता।

‘भारत जोड़ो यात्रा’ बना विवाद का कारण

यह मामला 2022 में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी द्वारा भारतीय सेना को लेकर की गई कथित टिप्पणी से जुड़ा है। आरोप है कि उनके बयान से सेना का अपमान हुआ। इसे लेकर लखनऊ निवासी और सीमा सड़क संगठन के पूर्व निदेशक (कर्नल समकक्ष) उदय शंकर श्रीवास्तव ने स्थानीय अदालत में शिकायत दर्ज कराई थी।

कोर्ट ने पांचवीं बार दी अंतिम चेतावनी

राहुल गांधी को इस मामले में लखनऊ की निचली अदालत से पहले भी कई बार समन जारी हो चुके हैं। अब कोर्ट ने उन्हें 23 जून 2025 को बतौर अभियुक्त व्यक्तिगत रूप से पेश होने का अंतिम अवसर दिया है। इससे पूर्व उनकी अनुपस्थिति पर अदालत ने नाराजगी जताई थी और स्पष्ट रूप से उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने को कहा है।

हाईकोर्ट ने याचिका क्यों की खारिज?

राहुल गांधी ने लखनऊ कोर्ट के समन आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 199(1) के तहत यदि कोई व्यक्ति कथित टिप्पणी से व्यक्तिगत रूप से आहत महसूस करता है, तो वह 'पीड़ित' की श्रेणी में आता है और उसके पास मामला दर्ज कराने का अधिकार है — भले ही वह सीधे तौर पर पीड़ित न हो।

सेना पर टिप्पणी को लेकर अदालत सख्त

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय सेना देश की सुरक्षा और अखंडता की रीढ़ है। उसके खिलाफ कोई भी अपमानजनक टिप्पणी न केवल अनुचित है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मर्यादा का भी उल्लंघन है। शिकायतकर्ता ने स्वयं को सेना का हिस्सा मानते हुए व्यक्तिगत अपमान की भावना व्यक्त की है, और इसलिए मामला दर्ज करना विधिसम्मत है।


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