ऊंट के आंसू से बनेगी सांप के जहर की दवा, वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता।



हर साल हजारों जानें बचाने की उम्मीद
भारत में हर साल हजारों लोग सांप के काटने से जान गंवा देते हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां समय पर इलाज मिलना मुश्किल होता है। लेकिन अब ऊंटों से जुड़ी एक नई वैज्ञानिक खोज इस गंभीर समस्या का समाधान बन सकती है। बीकानेर स्थित राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र (NRCC) के वैज्ञानिकों ने ऊंटों में ऐसी प्रतिरोधक क्षमता विकसित की है जो सांप के जहर को निष्क्रिय कर सकती है।

सॉ-स्केल्ड वाइपर के जहर से तैयार हुई खास एंटीबॉडी

वैज्ञानिकों ने सॉ-स्केल्ड वाइपर प्रजाति के सांप के जहर से ऊंटों को इम्यूनाइज किया। इसके बाद ऊंटों के आंसुओं और रक्त से जो एंटीबॉडी निकाली गई, उसने चौंकाने वाले परिणाम दिए। यह एंटीबॉडी न केवल सांप के जहर को बेअसर करती है, बल्कि पारंपरिक घोड़े से बनने वाले एंटीवेनम की तुलना में कम एलर्जिक रिएक्शन भी देती है।

किसानों की आमदनी में भी इजाफा

इस रिसर्च का एक और बड़ा फायदा राजस्थान के ऊंट पालक किसानों को मिला है। बीकानेर, जोधपुर और जैसलमेर जैसे इलाकों में रहने वाले किसानों को अब अपने ऊंटों के आंसू और रक्त के नमूनों के बदले हर महीने ₹5,000 से ₹10,000 तक की आमदनी हो रही है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल रही है

कैसे निकाले जाते हैं ऊंट के आंसू?

ऊंट के आंसू निकालने की प्रक्रिया वैज्ञानिक निगरानी में की जाती है। ऊंट को नियंत्रित मात्रा में सांप का विष दिया जाता है, जिससे उसके शरीर में प्रतिरोधक एंटीबॉडी विकसित होती हैं। कभी-कभी इस प्रक्रिया के दौरान एक एलर्जिक रिएक्शन के रूप में आंखों से आंसू निकलते हैं। इन्हीं आंसुओं को सुरक्षित तरीके से एकत्र कर विश्लेषण किया जाता है और विशेष तापमान में संग्रहित किया जाता है। यही प्रक्रिया भविष्य की एंटीवेनम दवा तैयार करने की नींव बन रही है।

हेल्थकेयर सिस्टम में क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद

NRCC अब स्थानीय किसानों को इस प्रक्रिया के लिए प्रशिक्षित कर रहा है। इससे न केवल विज्ञान में प्रगति हो रही है, बल्कि ग्रामीण समाज की आर्थिक स्थिति भी बेहतर हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह शोध आने वाले समय में भारत की हेल्थकेयर प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।




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